आखिर 90 प्रतिशत तक मतदान करने वाले इस बार क्यों रूठे?

लोकतंत्र में यूं तो चुनाव में मतदान न करना कोई समझदारी नहीं है। लेकिन, जब लोकतंत्र में जनता की सुनवाई न हो और बार-बार के आश्वासन, वायदे और घोषणाएं धरातल न उतरे तो जनता का गुस्सा होना भी स्वाभाविक ही है।

गंगा भोगपुर के ग्रामीणों ने भी इस बार अपनी नाराजगी जताते हुए मतदान से दूरी बनाए रखी। प्रत्येक चुनाव में 80 से 90 प्रतिशत तक मतदान करने वाले गंगा भागेपुर के ग्रामीणों ने इस बार नाराजगी भी ऐसा जताई कि 1273 मतदाताओं में से मात्र एक मतदाता ने ही मतदान केंद्र तक जाने की जहमत उठाई। हालांकि ग्रामीणों में मतदान न करने की टीस भी दिखी।

राजाजी टाइगर रिजर्व के अंतर्गत बैराज चीला मोटर मार्ग पर पड़ने वाले गंगा भोगपुर के ग्रामीणों की मुसीबतें वर्ष 1982 में राजाजी पार्क के बनने से ही शुरू हो गई थी। ऋषिकेश तथा हरिद्वार से मात्र 15-20 किमी की दूरी पर होने के बावजूद भी पार्क कानूनों के कारण इस गांव में विकास के नाम पर मूलभूत सुविधाओं का टोटा बना हुआ है।

82 गांवों को भुगतना पड़ता है खामियाजा

ऋषिकेश बैराज-चीला मोटर मार्ग इस गांव को जोड़ने वाला एक मात्र मार्ग है, जिस पर वर्षाकाल में बीन नदी में भारी उफान आ जाता है और बीन नदी पर पुल न होने के कारण गांव का संपर्क कई दिनों के लिए कट जाता है। बीन नदी पर पुल निर्माण की मांग केवल गंगा भोगपुर के ग्रामीणों की नहीं है, बल्कि यमकेश्वर के डांडा मंडल के 82 गांवों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

गंगा भोगपुर से किमसार तथा ताल घाटी को जोड़ने वाले मार्ग की हालत भी पार्क क्षेत्र होने के कारण बदलहाल है। गांव के भीतर सड़कों का निर्माण नहीं हो रहा है। वहीं गंगा भोगपुर तल्ला गंगा की बाढ़ के कारण हमेशा ही खतरे की जद में रहता है। यहां गंगा किनारे तटबंध न होने के कारण हर वर्ष भू-कटाव हो रहा है, जिससे अब गंगा का बाढ़ क्षेत्र गांव के बेहद निकट पहुंच गया है।

वर्ष 2014 में डांडामंडल के 82 गांवों के ग्रामीणों ने अपनी इन्हीं मांगों को लेकर गंगा भोगपुर को ही केंद्र बनाकर कई दिनों का लंबा आंदोलन चलाया था। तब शीघ्र ही इन समस्याओं का हल करने का आश्वासन सरकार की ओर से दिया गया था। मगर, जब कुछ भी हाथ नहीं आया तो, अब ग्रामीणों ने मतदान से दूरी बनाते हुए अपनी बात जिम्मेदारों तक पहुंचाने का निर्णय लिया। ग्रामीणों का कहना है कि यह अभी शुरुआत है, यदि उनकी अनदेखी की गई तो आगे आंदोलन को और बड़ा रूप दिया जाएगा।

शुक्रवार को मतदान के रोज ग्रामीणों ने मतदान केंद्र की ओर जाने के बजाय अपने खेत खलिहानों का रुख किया। ग्रामीणों ने खेतों में गेहूं की कटाई और मंडाई की। उधर, गंगा भोपगुर इंटर कालेज में बने पोलिंग बूथ पर निर्वाचन कर्मी पूरे दिन मतदान के लिए ग्रामीणों की बाट जोहते रहे। आखिरकार सायं पांच बजे मतदान केंद्र से पोलिंग पार्टियां भी चलती बनी।

राजाजी टाइगर रिजर्व के कारण हमारा गांव बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव झेल रहा है। हमारे हक-हकूक भी हमें नहीं मिल पा रहे हैं। बच्चों के खेल मैदान तथा ग्रामीणों के चारागाह तक पार्क ने हमसे छीन लिए। ऐसे में हम किसके लिए सरकार चुने।

– अर्जुन सिंह भंडारी, ग्रामीण, गंगा भोगपुर

बीन नदी पुल, गंगा भोपगुर को पार्क क्षेत्र से मुक्त करने तथा तटबंध के निर्माण की हमारी प्रमुख मांगें हैँ। इन मांगों को लेकर हम कई बार आंदोलन कर चुके हैं। मगर, हर बार ग्रामीणों को ठगा जाता रहा है। इसीलिए हमने इस लोकसभा में मतदान न करने का निर्णय लिया। यदि इसी तरह अनदेखी होती रही तो हमें आगे और सख्त कदम उठाने पड़ेंगे।

– अनिल नेगी, उप प्रधान, गंगा भोगपुर

गंगा भोगपुर गांव एक राजस्व गांव है, जो राजाजी पार्क बनने से कई वर्ष पूर्व से अस्तित्व में है। मगर, गंगा भोगपुर को पार्क की कोर जोन में शामिल कर हमारे बुनियादी अधिकारों का भी गला घोंट दिया गया है। वन कानूनों के चलते हम अपने ही घर में आदिवासी बन गए हैं।

– त्रिलोक सिह रावत, वरिष्ठ नागरिक, गंगा भोगपुर

बीन नदी में पुल न होने के कारण हम प्रदेश की राजधानी के निकट होने के बावजूद भी दूर हो गए हैं। वर्षाकाल में यहां जीवन को खतरे में डालकर बच्चों को स्कूल भेजना पड़ता है। हमें घर बनाने के लिए लकड़ी, रेत, बजरी, कंकरीट आदि भी सुलभ नहीं हो पाता।

– पारस शर्मा, युवा, गंगा भोगपुर

हम प्रत्येक चुनाव में मतदान करते आए हैं। आज भले ही हमने मतदान नहीं किया मगर मन में एक टीस भी है। हम भी चाहते हैं कि देश में अच्छी सरकार बने। मगर, जब सरकारें हमारी बुनियादी जरूरतों पर ही ध्यान नहीं देती तो हम भी कब तक अपने भविष्य को दांव पर लगाते रहेंगे।

– कमला देवी, ग्रामीण, गंगा भोगपुर

राजाजी टाइगर रिजर्व वन कानूनों का भय सिर्फ हम ग्रामीणों को ही दिखाता है। हम गांव में सड़कें और रास्ते नहीं बना सकते। जबकि कुछ ही दूरी पर रसूखदारों के होटल और रिसार्ट बने हैं। उनके लिए सड़कें और मार्ग पक्के बन गए। ऐसा दोहरा मापदंड अपनाना कहां तक जायज है।

– गणेशी देवी, ग्रामीण, गंगा भोगपुर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *