संत रविदास जयंती पर विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल द्वारा की गई सामाजिक समस्या की गोष्ठी का आयोजन

विश्व हिंदू परिषद बजरंग दल द्वारा सामाजिक समरसता की गोष्ठी का आयोजन कावली रोड स्थित इंद्रेश नगर संत शिरोमणि रविदास मंदिर के प्रांगण मे किया गया

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रांत साप्ताहिक मिलन प्रमुख विकास वर्मा मुख्य मुख्य अतिथि दौलत राम ,साकेत वाल्मीकि,मनोज जाटव द्वारा संत रविदास व श्रीराम के समक्ष दीप प्रज्वलित कर गोष्ठी प्रारंभ कि

संत रविदास जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए सभी वक्ताओं ने विषय रखे मुख्य वक्ता विकास वर्मा ने कहा

संत रविदास जी ने जाति भेद मिथ्या है. यह कहा। जन्म से कोई ऊँच-नीच नहीं होता, कर्म से व्यक्ति बढ़ा होता है। उन्होंने कहा. जाति कोई भी हो भगवत् भक्ति सभी का उद्धार करेगी।

विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर भक्त हो सकता है.

अपनें सहज-सुलभ उदाहरणों वाले और साधारण भाषा में दिए जानें वाले प्रवचनों और प्रबोधनों के कारण संत रैदास भारतीय समाज में अत्यंत आदरणीय और पूज्यनीय हो गए थे. वे भारतीय वर्ण व्यवस्था को भी समाज और समय अनुरूप ढालनें में सफल हो चले थे. वे अपनें जीवन के अन्तकाल तक धर्मांतरण के विरोध में समाज को जागृत किये रहे और वैदिक धर्म में घर वापसी का कार्य भी संपन्न कराते रहे. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन धर्म और राष्ट्र रक्षार्थ जिया संत रैदास के नेतृत्व में उस समय समाज में ऐसा जागरण हुआ कि उन्होंने धर्मांतरण को न केवल रोक दिया बल्कि उस कठिनतम और चरम संघर्ष के दौर में भारत देश में कब्जा करने की नीयत से आए मुस्लिम आक्रांता शासकों को खुली चुनौती देते हुए देश के अनेकों क्षेत्रों में धर्मान्तरित हिन्दुओं की घरवापसी का कार्यक्रम भी जोरशोर से चलाया. संत रविदास न केवल देश भर की पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार्य संत हो गए अपितु अगड़ी जातियों के शासकों और राजाओं ने भी उन्हें राजनैतिक कारणों से अपनें अपनें दरबार में सम्मानपूर्ण स्थान देना प्रारम्भ कर दिया. इस प्रकार संत रविदास को मिलनें वाले सम्मान के कारण देश की पिछड़ी और अगड़ी जातियों एतिहासिक समरसता का वातावरण निर्मित हो चला था.

संत रविदास भारतीय सामाजिक एकता के प्रतिनिधि संत के रूप में स्थापित हो गए थे क्योंकि मुस्लिम शासकों को चुनौती देनें का जो दुष्कर कार्य ये शासक नहीं कर पाए थे वह समाज शक्ति को जागृत करनें के बल पर एक संत ने कर दिया था!! पिछड़ी जातियों में आर्थिक व सामाजिक पिछड़ेपन के बाद भी स्वधर्म सम्मान का भाव जागृत करनें में रैदास सफल रहे और इसी का परिणाम है कि आज भी इन जातियों में मुस्लिम मतांतरण का बहुत कम प्रतिशत देखनें को मिलता है. निर्धन और अशिक्षित समाज में धर्मांतरण रोकनें और घर वापसी का जो अद्भुत, दूभर और दुष्कर कार्य उस काल में हुआ वह इस दिशा में प्रतिनिधि रूप में संत रविदासजी का ही सूत्रपात था. इससे मुस्लिम शासकों में उनकें प्रति भय का भाव हो गया.

संत रैदास ने भारतीय समाज को “मन चंगा तो कठौती में गंगा” जैसी कालजयी लोकोक्ति दी जिसके बड़े ही सकारात्मक अर्थ वर्तमान परिवेश में भी निकलतें हैं. आज संत रैदास के अवतरण दिवस पर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि केवल यह होगी कि इस भारत भूमि पर सभी वर्णों, जातियों, समाजों और वर्गों के मतावलंबी राष्ट्रहित में एक होकर वैदिक मार्ग अपनाएँ रहें. स्वामी विवेकानंद ने एक धर्मांतरण से एक राष्ट्र शत्रु के जन्म का जो विचार वर्तमान काल में प्रकट किया उसे संत रैदास नें छः सौ वर्ष पूर्व समझ लिया था और राष्ट्र को समझानें बतानें हेतु देश के हर हिस्सें में जाकर जागरण भी किया था. नमन इस अद्भुत संत को,राष्ट्रभक्त को और अनुपम भविष्यदृष्टा को….

कार्यक्रम में वाल्मीकि, रविदासी सोनकर समाज के बहुत लोगों ने भाग लिया जिसमे प्रांत टोली समरसता से नवीन गुप्ता , राजेन्द्र राजपूत,कार्यक्रम संयोजक विहिप सहमंत्री विशाल चौधरी विभाग संयोजक अमन स्वेडिया, अजय भारती , राजेश सोमवंशी, अभिषेक सोनकर, लक्ष्मण घाघट,यशविंदर चौधरी, देवेंद्र पुंडीर, अभिषेक सोनकर, आर्यन सोनकर, विहिप उपाध्यक्षा प्रेम सेठी , हरीश सेठी, अजय गौड, व अन्य रहे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *